कानपुर में बहुचर्चित ‘लुटेरी दुल्हन’ प्रकरण में नया मोड़ आ गया. अदालत ने पुलिस की रिमांड याचिका को सिरे से खारिज करते हुए आरोपी दिव्यांशी चौधरी को कोर्ट परिसर से ही मुक्त कर दिया. फैसले में कोर्ट ने दो टूक कहा कि पुलिस रिमांड के समर्थन में कोई भी ठोस, विश्वसनीय या विधिसम्मत प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सकी. इस टिप्पणी के साथ अदालत ने पुलिस व्यवस्था पर अप्रत्यक्ष रूप से कड़ी नाराजगी जताई. और पढ़ें
पुलिस को लगी फटकार, अफसरों से तलब
रिमांड अर्जी खारिज होने के बाद मामला कानपुर पुलिस प्रशासन के लिए असहज स्थिति पैदा करने वाला साबित हुआ. सुनवाई समाप्त होते ही डीसीपी ने सम्बंधित विवेचक और अधिकारियों को तत्काल उपस्थित होने के निर्देश दिए. सूत्रों के अनुसार, प्रभारी अधिकारियों से पूछा जा रहा है कि इतने संवेदनशील और बहुचर्चित प्रकरण में आखिर जांच किस स्तर पर कमजोर पड़ गई कि अदालत में रिमांड जैसा सामान्य-से-महत्वपूर्ण आदेश भी नहीं मिल सका. अधिकारियों की शुरुआती समीक्षा में यह बात सामने आ रही है कि मुकदमे में दर्ज कई धाराओं के समर्थन में पुलिस को जिन रिकॉर्ड और दस्तावेजों की आवश्यकता थी, वे रिमांड के समय प्रस्तुत नहीं किए गए. इससे अदालत को यह संतोष नहीं हो सका कि आरोपी से पूछताछ के लिए रिमांड आवश्यक है.
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दरोगा की शिकायत पर हुई थी एफआईआर
मामला ग्वालटोली थाने में तैनात सब-इंस्पेक्टर आदित्य की ओर से की गई शिकायत से शुरू हुआ था. मूल रूप से बुलंदशहर के बीबी नगर निवासी आदित्य ने नवंबर 2024 में अपनी पत्नी दिव्यांशी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी.शिकायत में उन्होंने आरोप लगाया कि दिव्यांशी ‘ठगी करने वाली दुल्हन’ है, जिसने शादी को सिर्फ धोखाधड़ी का माध्यम बनाया. दोनों का विवाह 17 फरवरी 2024 को मेरठ के बड़ा मवाना निवासी दिव्यांशी चौधरी से धूमधाम से हुआ था. आदित्य ने आरोप लगाया कि विवाह के बाद धीरे-धीरे कई बातें संदिग्ध दिखाई देने लगीं और अंततः उन्हें लगा कि यह विवाह किसी संगठित ठगी का हिस्सा है. इसी आधार पर उन्होंने एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें कई धाराओं के तहत मामला पंजीकृत किया गया.
दिव्यांशी के वकील बोले
अदालत में सुनवाई के दौरान दिव्यांशी की ओर से अधिवक्ता वरुण भसीन पेश हुए. उन्होंने दलील दी कि पुलिस की रिमांड मांग न तो तथ्यात्मक रूप से मजबूत है, न ही कानूनी रूप से उचित. उनका कहना था कि पुलिस ने जिस ‘मटेरियल’ का हवाला दिया, वह अदालत की नजर में संदेह को भी पार नहीं कर सका. ऐसे में किसी भी आरोपी को रिमांड पर भेजना न्यायसंगत नहीं होता. अदालत ने भी यही माना कि रिमांड तभी दी जाती है जब पूछताछ के लिए उसके पीछे कोई मजबूत आधार हो. चूंकि पुलिस वह आधार प्रस्तुत नहीं कर सकी, इसलिए रिमांड को नामंज़ूर कर दिया गया. इसके साथ ही कोर्ट ने आरोपी को व्यक्तिगत मुचलके पर रिहाई का आदेश जारी कर दिया.
कोर्ट ने कहा- सिर्फ आरोपों के आधार पर रिमांड संभव नहीं
सुनवाई में अदालत ने स्पष्ट किया कि महज आरोप, संदेह या अनुमान के सहारे किसी की स्वतंत्रता को सीमित नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि किसी भी रिमांड आदेश का आधार ठोस और वस्तुगत होना चाहिए. पुलिस की ओर से प्रस्तुत सामग्री में यह ठोसपन नहीं था. अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि आरोपी जांच में सहयोग करेगी और किसी भी गवाह, अधिकारी या साक्ष्य को प्रभावित करने का प्रयास नहीं करेगी.
वकील ने लगाए गंभीर आरोप
दिव्यांशी के वकील ने अदालत में यह भी आरोप लगाया कि पुलिस ने दिन में लगभग 12 बजे गिरफ्तारी की, लेकिन रिमांड के लिए आवेदन दाखिल करने की प्रक्रिया शाम 5:30 बजे के बाद शुरू हुई. उन्होंने कहा कि पुलिस देर शाम रिमांड लेने के लिए घर जाकर पहुंची, लेकिन अदालत की समय-सीमा पार हो चुकी थी. संबंधित जज ने शाम को रिमांड सुनने से यह कहते हुए मना कर दिया कि प्रक्रिया रात में पूरी नहीं की जा सकती, इसलिए सुबह आएँ. अदालत ने इस प्रक्रिया पर भी नाराजगी जताई. वकील के अनुसार कोर्ट ने टिप्पणी की कि पुलिस देर रात सिर्फ इस उम्मीद में पहुंची थी कि ‘बिना फाइल पढ़े’ रिमांड मिल जाएगा.
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