Britain immigration labour govt reforms: ब्रिटेन की लेबर सरकार ने हाल के दिनों में इमीग्रेशन को लेकर अपना रुख और सख्त कर लिया है, खासकर उन लोगों पर जो फ्रांस से छोटी नावों में सवार होकर गैर क़ानूनी तरीके से ब्रिटेन में दाखिल होते हैं. दरअसल, देश में पॉपुलिस्ट पार्टी “रीफॉर्म यूके” की बढ़ती लोकप्रियता और उसके सख्त प्रवासन एजेंडे के बाद सरकार दबाव में थी और वोटरों के मूड को देखते हुए उसने ये कदम उठाया. और पढ़ें
ब्रिटेन सरकार ने कहा कि वह इस नीति में डेनमार्क जैसे यूरोपीय देशों से प्रेरणा लेगी. डेनमार्क को यूरोप में प्रवासियों के लिए सबसे सख्त देशों में माना जाता है.
मानवाधिकार संगठनों ने वहां की नीतियों की तीखी आलोचना भी की है, क्योंकि उनका कहना है कि इससे प्रवासियों के साथ भेदभाव और दुर्व्यवहार बढ़ा है.
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अस्थायी दर्जा और नई शर्तें
ब्रिटेन के गृह मंत्रालय ने शनिवार रात जारी बयान में कहा कि अब कुछ शरणार्थियों के लिए सरकारी सहायता, जैसे घर देने या साप्ताहिक भत्ते की सुविधा, खत्म कर दी जाएगी. ये बदलाव उन लोगों पर लागू होंगे जो काम करने में सक्षम हैं लेकिन काम नहीं करते या फिर जिन्होंने कानून तोड़ा है.
सरकार का कहना है कि टैक्स से मिलने वाली यह मदद अब उन लोगों को प्राथमिकता से दी जाएगी जो देश की अर्थव्यवस्था या समाज के लिए योगदान दे रहे हैं.
गृह मंत्रालय ने बताया कि अब शरणार्थियों को दी जाने वाली सुरक्षा स्थायी नहीं होगी, बल्कि हर कुछ सालों में उसकी समीक्षा की जाएगी. अगर ब्रिटेन को लगे कि शरणार्थी का मूल देश अब सुरक्षित है, तो उसका शरण का अधिकार खत्म किया जा सकता है.
गृह मंत्री शबाना महमूद ने बताया कि अभी तक पांच साल के बाद शरणार्थियों को स्थायी रूप से बसने की अनुमति मिल जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. उन्होंने कहा कि नए नियमों में हर दो साल छह महीने पर (यानी डेढ़ बार हर पांच साल में) उनकी स्थिति की समीक्षा की जाएगी और स्थायी बसने की पूरी प्रक्रिया अब 20 साल लंबी होगी.
मानवाधिकार कानून और विवाद
महमूद ने यह भी कहा कि सोमवार को सरकार इन बदलावों की और जानकारी देगी, खास तौर पर यूरोपियन कन्वेंशन ऑफ ह्यूमन राइट्स (ECHR) के अनुच्छेद 8 से जुड़ी बातों पर. यह अनुच्छेद “परिवार के साथ रहने के अधिकार” से जुड़ा है.
सरकार चाहती है कि ब्रिटेन ECHR में तो बना रहे, लेकिन अनुच्छेद 8 की व्याख्या का तरीका बदले. महमूद का कहना है कि कुछ मामलों में इस अनुच्छेद का इस्तेमाल ऐसे लोगों द्वारा किया जा रहा है जो देश में रहने के पात्र नहीं हैं, फिर भी कानूनी रास्ते से अपनी वापसी रोक लेते हैं.
सरकार के इन नए सख्त कदमों पर भारी आलोचना भी हुई है. 100 से ज्यादा ब्रिटिश चैरिटी संगठनों ने महमूद को लिखा कि वह “प्रवासी-विरोधी माहौल फैलाने और दिखावे की नीतियां” बनाना बंद करें. उनका कहना है कि ऐसी नीतियां समाज में नस्लवाद और हिंसा को बढ़ावा दे रही हैं.
बढ़ती चिंताएं और विरोध
पिछले कुछ महीनों में आव्रजन मुद्दा ब्रिटेन के लोगों की सबसे बड़ी चिंता बन गया है. सर्वे बताते हैं कि अब यह मुद्दा अर्थव्यवस्था से भी ऊपर है. गर्मी के मौसम में कई जगहों पर होटलों के बाहर विरोध प्रदर्शन हुए, जहां सरकार शरणार्थियों को अस्थायी रूप से रख रही थी.
यह भी पढ़ें: क्या ब्रिटेन में बाहरियों को स्थानीय लोगों से ज्यादा हक मिल रहा, विरोध के बीच किसे हुई प्रवासियों से सहानुभूति?
मार्च 2025 तक के एक साल की रिपोर्ट के मुताबिक 1,09,343 लोगों ने ब्रिटेन में शरण मांगी. यह पिछले साल की तुलना में 17 फीसदी ज्यादा है और 2002 के मुकाबले भी लगभग 6 फ़ीसदी अधिक.
ब्रिटेन की नीति पर यूरोपीय असर
सरकार का कहना है कि वह चाहती है कि ब्रिटेन में भी डेनमार्क जैसी नीति लागू हो, बल्कि कुछ पहलुओं में उससे भी आगे बढ़े. डेनमार्क में शरणार्थियों को अस्थायी रूप से दो साल का निवास परमिट मिलता है, जो खत्म होने पर उन्हें फिर से आवेदन करना पड़ता है. अगर उनके देश की स्थिति सुरक्षित मानी जाती है, तो उन्हें वापस भेज दिया जाता है.
डेनमार्क की सख्त नीतियों के बाद वहां शरण मांगने वालों की संख्या 40 साल के न्यूनतम स्तर पर आ गई. जिनकी मांग खारिज होती है, उनमें से 95 फीसदी को वापस भेज दिया जाता है.
हालांकि, मानवाधिकार समूहों का कहना है कि ऐसी नीतियां प्रवासियों के लिए भय का माहौल बनाती हैं और उन्हें अनिश्चितता में छोड़ देती हैं.
शरणार्थी परिषद की प्रतिक्रिया
ब्रिटेन की “रिफ्यूजी काउंसिल” ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि शरणार्थी किसी देश की नीति देखकर नहीं भागते, बल्कि वे वहां जाते हैं जहां उनके रिश्तेदार या कुछ जान-पहचान वाले मौजूद होते हैं, या जहां भाषा का थोड़ा ज्ञान हो. उनका मकसद बस सुरक्षित जगह पाना होता है, न कि नीति का फायदा उठाना.
इस तरह, ब्रिटेन ने शरण नीति में अब तक के सबसे बड़े बदलावों का ऐलान किया है. सरकार का कहना है कि उसका इरादा व्यवस्था को “और सख्त” लेकिन “न्यायसंगत” बनाना है. वहीं आलोचक कहते हैं कि ये नीतियां इंसानियत और मानवीय मूल्यों के खिलाफ हैं और इससे कई निर्दोष लोगों की जिंदगी अनिश्चितता में चली जाएगी.
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