जन्मदिन मनाने को लेकर संघ में पहले एकराय नहीं थी. (Photo: AI generated)



अक्सर आपने देखा होगा कि बीजेपी के कार्यकर्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन सेवा पखवाड़ा के तौर पर मनाते हैं और हर साल उसमें कुछ नया जोड़ देते हैं जैसे इस बार ‘माई मोदी स्टोरी’ का आइडिया. पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिन ‘बाल दिवस’ के रूप में घोषित कर दिया गया तो अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन को सुशासन दिवस. लेकिन RSS अपने किसी सरसंघचालक या किसी और अधिकारी का जन्मदिन मनाए, ये किसी ने सुना नहीं होगा. संघ से जुड़े या जानने वाले भी जानते हैं कि संघ केवल 6 पर्व साल भर में मनाता है और उसमें संयोग से नव वर्ष प्रतिपदा के दिन संघ संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार की जयंती भी होती है, लेकिन उसके लिए अलग से कुछ नहीं किया जाता. ऐसे में जब ये पता लगे कि एक बार संघ ने अपने सरसंघचालक गुरु गोलवलकर के 50 साल पूरे होने पर उनका 51वां जन्मदिन पूरे देश भर में मनाया था, वो भी पूरे 83 दिन तक, तो हैरत होना स्वाभाविक है. कर्ज की कहानी की सच्चाई और पढ़ें

जो गुरूजी अपने फोटो तक खिंचवाने से बचते थे, उनको जन्मदिन मनाने के लिए कैसे तैयार किया होगा? ये सवाल संघ समर्थकों के मन में हो सकता है. इसका जवाब गुरु गोलवलकर की आत्मकथा लिखने वाले दो विद्वान अपनी किताबों में देते हैं. रंगा हरि लिखते हैं कि संघ ने 1952 में गौहत्या के विरोध में चले अभियान के दौरान देश भर में बड़ा सम्पर्क अभियान आम जनता के बीच चलाया था. ऐसे में 4 साल बाद जरूरत महसूस की जा रही थी कि कोई उसी तरह का सम्पर्क अभियान चलाया जाए, जनता के बीच जाया जाए. वहीं सीपी भिषिकर गुरु गोलवलकर की आत्मकथा में लिखते हैं, सत्याग्रह आयोजनों के दौरान संघ की वित्तीय स्थिति उतनी मजबूत नहीं रह गई थी, बल्कि कर्ज भी चढ़ गया था. आमतौर पर संघ बस अपने स्वयंसेवकों से मिली गुरुदक्षिणा से ही व्यवस्था चलाता है, आम जनता से धन नहीं लेता. लेकिन अब लग रहा था, कि जनता के बीच सम्पर्क अभियान के दौरान कुछ तरीकों से उनसे आर्थिक मदद ली जाए. रंगा हरि कर्ज का उल्लेख तो नहीं करते, लेकिन ये जरूर बताते हैं कि जब चार बड़े संघ अधिकारी लाला हंसराज, बैरिस्टर नरेन्द्र सिंह, भोलानाथ झा और धर्मवीर गुरु गोलवलकर के पास जन्मदिन आयोजन का विचार लेकर पहुंचे तो उन्होंने फंड इकट्ठा करने की बात उनसे कही. जन्मदिन आयोजन की बात सुनकर गुरु गोलवलकर हैरान थे. चारों ने कहा, “ये कार्यक्रम संघ कार्य की प्रगति के लिए है, इसे स्वीकार करिए”. उनका जवाब था, “ऐसा है? तो ये संघ कार्य की प्रगति के लिए है? उसके लिए तो आप मेरा बलिदान ले सकते हैं, मैं खुद को हाजिर कर दूंगा”. ऐसे ही इस कार्यक्रम की योजना नहीं बनी थी, इस पूरे आयोजन को लेकर एकनाथ रानाडे, दत्तोपंत ठेंगड़ी, प्रोफेसर बापूराव वरहदपांडे जैसे कई दिग्गज चेहरों को योजना बनाने का जिम्मा सौंपा गया था. लक्ष्य था देश की 2 प्रतिशत वयस्क आबादी से सीधा सम्पर्क बनाना. दो बुकलेट्स के जरिए इकट्ठा हुआ था धन

इस मौके पर संघ ने बुकलेट भी प्रकाशित कीं, क्योंकि उन बुकलेट के जरिए ना केवल विचार लोगों तक पहुंचाने थे, बल्कि उसकी बिक्री से धन भी इकट्ठा करना था. एक बुकलेट का नाम था ‘व्यक्ति दर्शन’, इसमें गुरु गोलवलकर की आत्मकथा जैसा साहित्य था, इसकी कीमत 2 आना यानी 12 पैसे रखी गई थी. और दूसरी थी ‘विचार दर्शन’, इसमें गुरु गोलवलकर के विचारों का संग्रह था. जो एक तरह से संघ के ही विचारों का प्रतिबिंब थे. इसकी कीमत आठ आना यानी पचास पैसे रखी गई थी. एक पर्चा भी घर घर जाकर बांटना था, जिसमें प्रसिद्ध ग्रंथ सुभाषितरत्नाभंडागारम का एक श्लोक छपा हुआ था, “धर्मो रक्षति रक्षितः मानुष्ये सति दुर्लभा पुरुषता पुंस्त्वे पुनर्विप्रता विप्रत्वे…..”. आज की तरह ऐसा कतई नहीं था कि हर सड़क चौराहों पर पोस्टर, बैनर या कट आउट्स लगाए जाएं. एक काम ये और किया गया कि कुछ बड़े विद्वानों और सार्वजनिक क्षेत्र की हस्तियों ने गुरु गोलवलकर और संघ को लेकर कुछ लेख लिखे, जो देश भर के अखबारों में प्रकाशित हुए. बाकी सारा प्रचार हर शाखा के स्वयंसेवकों ने घर घर जाकर किया, सम्पर्क किया, बुकलेट्स दीं, मौखिक समझाया, उनके सवालों के जवाब दिए, और आर्थिक सहयोग लिया.

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विजयादशमी के दिन गुरु गोलवलकर के जन्मदिन पर अनुष्ठान किया गया. (Photo: AI generated) ये तय किया गया गुरु गोलवलकर के जन्मदिन के कार्यक्रमों को उनके जन्मदिन से ठीक 51 दिन पहले शुरू कर देना है. उनका जन्मदिन हिंदू महीने के अनुसार उस साल 8 मार्च को था, सो जनवरी में ही इस कार्यक्रम को शुरू कर दिया गया था. ये भी तय किया गया कि 8 मार्च से 8 अप्रैल तक इस अभियान का दूसरा चरण चलेगा. पहला चरण एक्शन का था, यानी सम्पर्क बढ़ाना, बुकलेट्स देकर धन इकट्ठा करना, संघ के बारे में जागरूकता बढ़ाना और दूसरा चरण गुरु गोलवलकर के सम्मान समारोहों का था. जिसका समापन 8 अप्रैल को दिल्ली के रामलीला मैदान में होना था. हर राज्य ने इन समारोहों के लिए अपनी अपनी एक स्वागत समिति बना दी थी. कुछ बड़े कार्यक्रमों में मंच पर बैठने के लिए प्रबुद्ध जनों को आमंत्रित किया गया था. नागपुर समिति के अध्यक्ष प्रसिद्ध इतिहासकार राधाकुमुद मुखर्जी थे, दिल्ली में पाकिस्तान में उच्चायुक्त रहे सीताराम थे. हर समारोह में गुरु गोलवलकर को एक मंगल पत्र और धनराशि भेंट की गई. रंगाहरि ने अलग अलग राज्यों से इकट्ठा हुई धनराशि का ब्यौरा दिया है, जो कुल 21 लाख रुपए थी. लेकिन डॉ हेडगेवार के सहयोगी ने उठा दिया ऐतराज

जब ये अभियान जनवरी में शुरू हुआ था, गुरु गोलवलकर 31 जनवरी को केरल के पश्चिम पट्टाम्बी में आयुर्वेद चिकित्सा के लिए चले गए थे. उसके बाद नागपुर वो 2 मार्च को ही लौटे थे. लेकिन पट्टाम्बी में उनसे मिलने सभी बड़े संघ अधिकारी आते जाते रहे. ऐसे में उनसे मिलने दादाराव परमार्थ भी आए, संघ के शुरूआती प्रचारक और हेडगेवार के करीबी लोगों में उनकी गिनती होती थी. लेकिन बाद में उनकी आस्था आध्यात्म में ज्यादा हो गई, तो पहले पांडिचेरी के अरविंदो आश्रम, फिर ऋषिकेश चले गए थे. दादाराव ही वो व्यक्ति थे, जो चेन्नई के टीवीआर शास्जी को संघ में लाए थे, उन्हीं शास्त्रीजी ने संघ से प्रतिबंध हटाने में गुरु गोलवलकर की काफी सहायता की थी.

RSS के सौ साल से जुड़ी इस विशेष सीरीज की हर कहानी  उनका मिलने का विषय थोड़ा अलग था, वो गुरु गोलवलकर का जन्मदिन मनाने की बात से खुश नहीं थे, उनका कहना था कि संघ में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं रही है. डॉ हेडगेवार भी इसके सख्त विरोध में थे कि किसी भी व्यक्ति को संगठन से ज्यादा प्रमुखता दी जाए. तब डॉ गोलवलकर ने उन्हें बताया कि मैं भी आपकी तरह ही सोचता हूं, लेकिन संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवकों ने सामूहिक रूप से ये निर्णय लिया है, तो उसके पीछे कुछ वजहें हैं. उन्होंने एक एक करके वो वजहें बताईं. तब जाकर दादाराव परमार्थ संतुष्ट हुए थे और सहमत होकर वहां से गए थे. 8 मार्च के दिन विजया एकादशी के दिन पूरे विधि विधान से गुरु गोलवलकर के जन्मदिन पर नागपुर में अनुष्ठान आदि किया गया. उनकी मां ‘ताईजी’ काफी प्रसन्न थीं, सबसे पहले उन्हीं का आशीर्वाद लिया गया. उनकी अनुमति से गुरु गोलवलकर के फोटो भी लिए गए. उसके बाद वह रेशमी बाग डॉ हेडगेवार की समाधि पर भी गए, पुष्प अर्पित किए. देश भर के तमाम छोटे बड़े शहरों में पूजा, हवन आदि कार्यक्रम किए गए. नागपुर में हुए ऐसे सम्मान समारोह में खुद गुरु गोलवलकर भी रहे. ऐसे मौके पर वो थोड़ा अंदर से परेशान भी थे कि सब कुछ उनके इर्द गिर्द ही हो रहा था, हर कोई उनके बारे में बात कर रहा था, संघ के बजाय उनकी तारीफ कर रहा था. शायद यही बात उनको सहज नहीं लग रही थी.

गुरु गोलवलकर RSS के दूसरे सरसंघचालक थे. (Photo: ITG) ऐसे में वो ऐसे कार्यक्रमों में थोड़ा बैकफुट वाली नीति भी अपनाते दिखे, ‘विचार दर्शन’ वाली बुकलेट को लेकर उन्होंने मंच से कहा कि, “इन्हें मेरे विचारों की तरह ना लिया जाए, ये तो संघ के विचार हैं”. एक जगह उन्होंने कहा कि, “मिशन व्यक्ति से बहुत बड़ा होता है, अगर कोई व्यक्ति ये सोचता है कि मिशन पूरी तरह उसी के ऊपर टिका है तो ये बेमतलब का अहंकार है. आज व्यक्ति है, कल नहीं होगा. कोई और आकर उसकी जगह लेगा और संगठन चलता रहेगा. सो मेरी आपसे प्रार्थना है कि व्यक्ति की तरफ नहीं संगठन की तरफ देखिए”. इस तरह के उनके विचारों से साफ लगता है कि उनको अपना महिमामंडन सहज नहीं लग रहा था. दिल्ली में प्रेस फोटोग्राफर्स से हो गए थे नाराज!

और इसी के चलते शायद दिल्ली के समापन समारोह में वो थोड़े परेशान हो गए थे. उनको आदत नहीं थी कि संघ के कार्यक्रम जिस तरह अनुशासन में होते हैं, वहां अव्यवस्था फैल जाए. जब वो सम्बोधन देने खड़े हुए तो अचानक से दिल्ली के प्रेस फोटोग्राफर्स ने पहले अपनी अपनी पोजीशन के लिए दौड़ लगाई, आपस में किसी खास जगह खड़े होने के लिए जिरह भी आपस में की होगी और फिर फोटो लेने के लिए अलग अलग जगह पोजीशन बदली होगी. आज भी ऐसा ही होता है, लेकिन गुरु गोलवलकर को ऐसी आदत नहीं थी. हजारों की भीड़ थी, लेकिन अनुशासित बैठी थी, उनके सम्बोधन के बाद पथसंचलन भी होना था, लेकिन कुछ अनुशासन में नहीं था तो प्रेस फोटोग्राफर्स. उनको लगा था कि कोई ना कोई उन्हें व्यवस्थित कर ही लेगा. लेकिन ये सब अचानक हुआ था, और किसी के बोलने तक प्रेस फोटोग्राफर्स भी चुपचाप अपनी अपनी जगह बैठे थे. गुरु गोलवलकर लेकिन उस दिन के नायक थे, सो सभी फोटो लेने के लिए टूट पड़े. इतना ही नहीं उनको फोटो देने के लिए कहने भी लगे. और अचानक गुरु गोलवलकर थोड़े नाराज हो गए, व्यवस्था में लगे अधिकारियों से बोले, अगर फोटोग्राफर्स ने मेरे फोटोज लेना बंद नहीं किया तो मैं ये सभा छोड़ दूंगा. अगले दो मिनट में तो सब व्यवस्थित भी हो गया था. लेकिन बाद में केवल टाइम्स ऑफ इंडिया ने अगले दिन अपनी रिपोर्ट में इस घटना का उल्लेख कर दिया था, उसको लेकर कुछ लोग तमाम कहानियां बना चुके हैं.

पिछली कहानी: उस दिन कार रुक जाती, तो गुरु गोलवलकर की हत्या का पूरा प्लान था!
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