राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सरदार वल्लभ भाई पटेल के रिश्तों को लेकर तमाम व्याख्याएं होती रही हैं. ये सच है कि उन्होंने ही संघ पर प्रतिबंध लगाया था पर ये भी सच है कि वो संघ की काफी तारीफ भी करते थे. संघ में उनके तार गुरु गोलवलकर से ही सबसे ज्यादा जुड़े थे. लेकिन बंटवारे के दौरान एक ऐसा वाकया आया कि गुरु गोलवलकर के साथ मिलकर सरदार पटेल ने आजाद भारत में कैदियों की शायद सबसे पहली अदला-बदली करवाई. और पढ़ें
बंटवारे के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों जगह कत्लेआम मचा हुआ था. सिंध और पश्चिमी पंजाब पहुंचते ही मुस्लिमों के समूहों ने अपने स्थानीय रिश्तेदारों की मदद से वहां हिंदुओं का कत्लेआम शुरू कर दिया, घरों पर कब्जा करना भी. उनका बदला लेने के लिए भारत के कुछ इलाकों में भी ऐसा ही कत्लेआम शुरू हो गया.
जब सारे अल्पसंख्यकों के स्थानांतरण की बात हुई, तो नेहरू और जिन्ना दोनों ने ही इस विचार को खारिज कर दिया और वायदा किया कि हम अपने-अपने अल्पसंख्यकों पर आंच नहीं आने देंगे. माहौल खराब देखकर उन दिनों लाहौर में पंजाबी फिल्मों के सुपरस्टार प्राण ने अपने परिवार को इंदौर में रिश्तेदार के यहां छोड़ा और वापस आए तो उनका पूरा घर जलता हुआ मिला. उन्होंने कभी पाकिस्तान ना जाने की कसम खा ली और निभाई भी.
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आडवाणी बना रहे थे कराची में बम?
1 फरवरी 2022 को पाकिस्तान के अखबारों में एक खबर छपी कि 10 सितम्बर 1947 का शिकारपुर (कराची) बम कांड केस फिर से खोला जाएगा. इन खबरों के मुताबिक, पाकिस्तान के होम डिपार्टमेंट और हाईकोर्ट में उस केस की फाइल के मुताबिक, 10 सितम्बर को दोपहर 3 बजे, कराची की शिकारपुर कॉलोनी में आरबी तोताराम के मकान में एक विस्फोट हुआ था. रंगा हरि अपनी किताब ‘द इनकम्पेरेबल गुरु गोलवलकर’ में इसे संघ कार्यालय बताते हैं. पाकिस्तानी अखबारों ने 2022 में छापा कि पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक लाल कृष्ण आडवानी और संघ के कुछ स्वयंसेवक उस घर की पहली मंजिल पर बम बना रहे थे. बम फट गया और 1 व्यक्ति की मौत हो गई. कराची की पुलिस ने उस घर में RSS से जुड़ा साहित्य बरामद होने की बात अपनी रिपोर्ट में लिखी थी.
पाकिस्तान की सरकार ने इसे जिन्ना और पीएम लियाकत अली खान की हत्या की साजिश करार दिया. इन रिपोर्ट्स के मुताबिक 7 दिन बाद एक ट्रिब्यूनल गठित हुआ और 1 साल बाद उसने दो अभियुक्तों खानचंद गोपाल दास और नंद बदलानी को सजा सुनाई लेकिन लाल कृष्ण आडवाणी आदि का केस ही पेंडिग में चला गया था. ‘डॉन’ ने गांधी और RSS को भी जोड़ दिया बम कांड से
गुरु गोलवलकर की आत्मकथा ‘श्री गुरुजी: पायनियर ऑफ ए न्यू इरा’ में लेखक सीपी भिषिकर लिखते हैं कि कराची में 9-10 सितम्बर की रात हुए बम विस्फोट के बाद से ही सरकार संघ के लोगों को निशाने पर लेने लगी. कराची पुलिस ने कराची के संघचालक बैरिस्टर खानचंद को 19 अन्य स्वयंसेवकों के साथ गिरफ्तार कर लिया. गुरु गोलवलकर को जैसे ही ये सूचना मिली, वो विचलित हो गए. वे हर कीमत पर एक-एक स्वयंसेवक को बचाना चाहते थे. लेकिन उससे पहले ही गांधीजी का दिल्ली की भंगी कॉलोनी (अब वाल्मीकि बस्ती) में चल रही संघ की शाखा देखने की योजना बन गई.
कराची में स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी की खबर से गोलवरकर काफी नाराज हुए. (Photo: AI generated)वो 12 सितम्बर को उस शाखा में आए. गुरु गोलवलकर खुद वहां मौजूद थे. अगले दिन पाकिस्तान के बड़े अखबार ‘डॉन’ ने बम विस्फोट और गांधीजी की संघ की शाखा में जाने की फोटो लगाकर एक बड़ी खबर छापी ‘कराची का ये बम विस्फोट भारत द्वारा पाकिस्तान को नष्ट करने की साजिश है, गांधीजी ने संघ की शाखा में स्वयंसेवकों से कहा है कि पाकिस्तान अगर अपनी नीति में बदलाव नहीं करता तो भारत से युद्ध तय है’. विभाजन की नाराजगी गुरु गोलवलकर ने कांग्रेस अध्यक्ष पर उतारी
उससे पहले 5 से 8 अगस्त 1947 के बीच गुरु गोलवलकर सिंध के दौरे पर थे. वे उन लोगों का हौसला बढ़ा रहे थे, जो भारत आना चाहते थे. उनके लिए भारत में क्या-क्या इंतजाम हैं और कहां किससे सम्पर्क करना है, अपने कार्यकर्ता कहां हैं, सरकार कहां और क्या मदद कर सकती है, ये सब बता रहे थे. इस दौरान तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष आचार्य जेबी कृपलानी भी कराची में ही थे. कृपलानी को जब ये पता चला कि गुरु गोलवलकर भी उसी शहर में हैं, तो उन्होंने मिलने की इच्छा जाहिर की. ये इच्छा उन्होंने अपने दोस्त बैरिस्टर खानचंद से जाहिर की. गुरु गोलवलकर कांग्रेस के विभाजन स्वीकार करने के फैसले से बेहद नाराज थे, कराची में लोगों की तकलीफें सुनकर उनका ये गुस्सा और भी बढ़ गया था. जब खानचंद ने उनको पूछा तो बड़े ही तीखे अंदाज में उन्होंने जवाब दिया, “अब मिलने का क्या मतलब है?” उसके बाद किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उनसे कुछ पूछ सके. फिर वहां से वो श्रीनगर गए औऱ आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित मंदिर में दर्शन किए. वहां से दिल्ली लौटकर नेहरू और पटेल को सिंध और कश्मीर के हालात से अवगत करवाया.
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लेकिन 1 महीने बाद ही इतनी बड़ी परेशानी आ गई. कराची में संघचालक के साथ 19 स्वयंसेवक और भी गिरफ्तार कर लिए गए थे. उनको बड़ी तेजी से ट्रिब्यूनल बनाकर उम्र कैद जैसी सजाएं भी दे दी गई थीं. गुरुजी फिर सरदार पटेल से मिले. गृहमंत्रालय के बाकी अधिकारी भी तब तक विभाजन के समय होने वाले रेस्क्यू ऑपरेशंस में संघ की भूमिका के प्रशंसक हो चुके थे. गुरु गोलवलकर ने रास्ता सुझाया कि अगर भारत अपने यहां से उनके कुछ राजनैतिक कैदियों को छोड़ने के लिए राजी हो तो बदले में वो भी शायद हमारे कैदी छोड़ने के लिए तैयार हो जाएं. सरदार पटेल और उनके अधिकारी इस बात पर तैयार हो गए. पाकिस्तान भी राजी हो गया और तय हुआ कि ये अदला बदली फिरोजपुर में होगी.
जिन्ना के दोस्त ने पड़ोसी डॉक्टर को गोली मार दी थी
जब भारत ने जांच की तो पता चला कि भारत की जेलों में एक ही पाकिस्तानी राजनैतिक कैदी है, जिन्ना के करीबी दोस्त डॉ अब्दुल कुरैशी, जिसे दिल्ली में अपने पड़ोसी और बड़े सर्जन डॉ एनसी जोशी की हत्या के आरोप में फांसी की सजा हुई थी. उनको जिन्ना का करीबी दोस्त माना जाता था. दंगों के दौरान मौका देखकर उन्होंने ड़ॉक्टर जोशी को अपनी राइफल से गोली मार दी थी. बीबीसी जैसे कुछ अखबारों ने ये भी आरोप लगाए थे कि 6 हिंदू-सिखों की गवाही पर फांसी दे दी गई, जबकि मुस्लिम गवाहों की गवाही नहीं मानी गई, जज भी हिंदू था. अब पाकिस्तान उसे किसी भी कीमत पर दिल्ली जेल से छुड़वाना चाहता था. पाकिस्तान के अधिकारियों को भारत का प्रस्ताव सही मौका लगा. उन्होंने फौरन हां कर दिया और कैदियों की अदला बदली की तैयारियां शुरू हो गईं.
इधर गुरु गोलवलकर ने खुद फिरोजपुर जाकर अपने स्वयंसेवकों के स्वागत की पूरी तैयारी कर ली थी. दिलचस्प बात है कि भिषिकर ने कहीं भी इस केस में कराची के स्वयंसेवक लाल कृष्ण आडवाणी के शामिल होने की बात नहीं लिखी. लेकिन ये जरूर लिखा है कि आडवाणी गुरूजी के साथ फिरोजपुर जाने के लिए तैयार थे. लेकिन पाकिस्तान ने अचानक ये कहकर झटका दे दिया कि एक कैदी के बदले वो बस एक ही कैदी छोड़ेगा, बाकी 19 को जेल में ही रखेगा. सारे परिवारों को वापस लौटना पड़ा और इस तरह एक महीना और निकल गया.
गुरुजी को पाक की इस हरकत से झटका सा लगा. अचानक उनके दिमाग में आइडिया आया और उन्होंने अपने सचिव डॉ अबाजी थट्टे को कहा कि, “फौरन काका साहेब गाडगिल (केन्द्रीय मंत्री एनवी गाडगिल) को फोन पर लो, मुझे उनसे बात करनी है”. सरदार पटेल दिल्ली में नहीं थे, सो काका साहेब गाडगिल ही उनकी गैर मौजूदगी में कार्यभार संभाल रहे थे. रंगा हरि लिखते हैं, गुरुजी ने उनको सुझाव दिया कि, “पाकिस्तान से केस के आधार पर अदला बदली की बातचीत की जाए ना कि कैदियों की गिनती के आधार पर”. सीपी भिषिकर लिखते हैं, “गुरुजी ने ये भी कहा कि, या तो सभी 20 स्वयंसेवक रिहा करे पाकिस्तान, नहीं तो कोई अदला-बदली नहीं होगी”.
आइडिया काम कर गया. जिन्ना की नाराजगी कोई मोल नहीं ले सकता था, जिन्ना को अपने उस करीबी की रिहाई की ये इकलौती किरण दिखी थी, वो इसे जाया नहीं करना चाहता था. पाकिस्तान को भारत की शर्त माननी पड़ी और इस तरह से जिन्ना के दोस्त के बदले सारे 20 स्वयंसेवक बचा लिए गए. आडवाणी जी ने भी इस घटना को अपनी जीवनी में लिखते हुए गुरु गोलवलकर की इन शब्दों के साथ तारीफ की है कि, ‘गुरुजी की योजना और उनका दृढ़ निश्चय, मेरे मन पर अमिट छाप छोड़ गया.’
पिछली कहानी: RSS पर बैन, पटेल का गुरुजी को कांग्रेस में विलय का ऑफर और प्रतिबंध हटने की कहानी
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