संघ के सदस्यों ने पाकिस्तानी कबीलाइयों को श्रीनगर घुसने से रोका. (Photo: AI generated)



बचपन से हम पढ़ते आए हैं कि कश्मीर के राजा हरि सिंह तय नहीं कर पा रहे थे कि भारत में मिलें, या पाकिस्तान में या फिर स्वतंत्र रहें. ऐसे में कबाइलियों के साथ मिलकर पाक सेना ने उन पर आक्रमण कर दिया. प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने साफ कह दिया कि जब तक विलय पत्र पर दस्तखत नहीं करोगे, सहायता के लिए सेना नहीं आएंगी. मजबूरन राजा को 26 अक्तूबर को विलय पत्र पर दस्तखत करने पड़े. तब जाकर दिल्ली ने सेना भेजी और उसने दो तिहाई कश्मीर पर वापस नियंत्रण ले लिया. बाद में नेहरू यूएन चले गए तो युद्ध विराम हो गया और एक तिहाई कश्मीर पाकिस्तान के कब्जे में रह गया. अब इस पूरी कहानी में आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कहां से आ गया? नीचे उसका जवाब है. राजा हरि सिंह ऊहापोह में थे तो उसकी दो बड़ी वजहें थीं. पहले तो उनके राजगुरु स्वामी संत देव ने भारत-पाक को छोड़कर अलग से एक ‘डोगरिस्तान’ बनाने के लिए वकालत की थी. दूसरे पंडित नेहरू और शेख अब्दुल्ला के जैसे करीबी रिश्ते थे, उससे वो खुश नहीं थे. नेहरू और राजा हरि सिंह में अच्छे संबंध नहीं थे. ऐसे में सरदार पटेल ने मेहर चंद महाजन से राजा हरि सिंह को भारत विलय में तैयार करने के लिए राजी करने को कहा. मेहर चंद महाजन बाद में भारत के तीसरे मुख्य न्यायाधीश बने, लेकिन उस वक्त वो कश्मीर के राजा के प्रधानमंत्री नियुक्त हुए थे. भले ही आजादी के समय बंटवारा करने वाले रेडक्लिफ आयोग के कांग्रेस की तरफ से सदस्य मनोनीत हुए थे, लेकिन उनको संघ समर्थक माना जाता था. पटेल से चर्चा कर मेहर चंद महाजन ने गुरु गोलवलकर से संपर्क किया, उनको कहा कि राजा हरि सिंह आपकी बात मान सकते हैं. मामला गंभीर था, गुरु गोलवलकर जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटना चाहते थे. उन्होंने फौरन अपने सारे आगामी कार्यक्रम रद्द कर दिए. ‘श्री गुरुजी समग्र दर्शन’ (सुरुचि प्रकाशन) के वोल्यूम 4 से जानकारी मिलती है कि 17 अक्टूबर को गुरु गोलवलकर अकेले श्रीनगर नहीं गए, बल्कि उनके साथ कुछ प्रचारक/अधिकारी माधवराव मुले, आभाजी थाटे, वसंत राव ओक और बैरिस्टर नरेंद्रजीत सिंह भी थे. 18 की सुबह राजा हरि सिंह से उनकी मुलाकात हुई.  राजा हरि सिंह ने संघ को लेकर क्या कहा?

गुरु गोलवलकर ने राजा हरि सिंह को कुछ बातें विस्तार से समझाईं, आपकी सेना के मुस्लिम सिपाहियों के बारे में आपको भी पता है कि वो कभी भी पाकिस्तान के साथ मिल सकते हैं. सो उनपर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता. पाकिस्तानी कश्मीर को कभी भी ज्यादा दिन तक स्वतंत्र राज्य रहने नहीं देंगे. आप हिंदू राजा हैं, भारत की संस्कृति, एकता और अखंड भारत के सपने के लिए कश्मीर के लिए भारत से बेहतर और कुछ नहीं. अगर आप पाकिस्तान के साथ मिलते हैं तो यहां की हिंदू जनता के लिए भारी मुसीबत हो जाएगी. हरि सिंह पहले से ही संघ स्वयंसेवकों से काफी खुश थे, नाराज तो बस नेहरू से थे, लेकिन गुरुजी ने आश्वासन दिया कि सरदार पटेल कश्मीर के हितों का ध्यान रखेंगे.

कश्मीर विलय से पहले श्रीनगर में गुरु गोलवलकर और हरि सिंह की मुलाकात हुई. (Photo: AI generated) सीपी भिषिकर द्वारा लिखित ‘श्रीगुरुजी’ में जानकारी मिलती है कि इस मौके पर राजा हरि सिंह ने संघ के स्वयंसेवकों की तारीफ में कहा था कि, “समय समय पर हमें जो महत्वपूर्ण सूचनाएं उनसे मिली हैं, शुरूआत में तो हमें उनकी बातों पर विश्वास ही नहीं हुआ था. लेकिन बाद में हमें लगा कि संघ की तरफ से आने वाली हर सूचना पूरी तरह भरोसे के काबिल है. पाकिस्तानी सैनिकों के बारे में इतना खतरा मोल लेकर सूचनाएं निकालना वाकई में बड़ी ही हिम्मत की बात है, इसके लिए उनकी तारीफ बनती है”.

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गुरुजी उनसे मिलकर श्रीनगर के डीएवी कॉलेज गए. वहां संघ के स्वयंसेवकों से मिलकर उनकी परेशानियां जानीं. उनको कुछ निर्देश दिए, हिम्मत दी और उनसे घाटी की सूचनाएं लीं. उसके बाद गुरु गोलवलकर दिल्ली आए और सरदार पटेल को राजा हरि सिंह से मुलाकात की विस्तार से जानकारी दी. बताया कि भारत के साथ मिलने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं है. उनकी चिंताओं के बारे में भी बताया. मेहर चंद महाजन ने अपनी आत्मकथा ‘लुकिंग बैक’ में इस मुलाकात की जानकारी देते हुए, ये बताया है कि इस मुलाकात के चलते राजा हरि सिंह के रुख को विलय की तरफ मोड़ने में काफी सहायता मिली और नेहरू से अच्छे रिश्ते ना होने की स्थिति में राजा को संघ और पटेल की तरफ से एक अघोषित गांरटी जैसी मिल गई थी. लेकिन आरएसएस ने कश्मीर के मामले में केवल ये मुलाकात करके इतिश्री नहीं कर ली थी. संघ के कार्यकर्ताओं का भूमिका कबाइलियों और पाकिस्तानी सेना के आक्रमण के दौरान भी अहम रही. युद्ध के बाद उन्होंने कश्मीर और कश्मीरियों के लिए जो किया, उसकी ज्यादा चर्चा नहीं होती. कबाइलियों के आक्रमण से पहले संघ के स्वयंसेवकों ने कश्मीर की सीमा के आसपास के गांवों में निगरानी बढ़ा दी थी. उसी के चलते जो सूचनाएं आ रही थीं, उनको राजा तक पहुंचाने का काम शुरू हुआ. संघ की जम्मू और ग्रामीण इलाकों (आरएस पुरा, अखनूर आदि) के स्वयंसेवकों ने पाया कि पाकिस्तान से स्यालकोट के रास्ते घाटी में हथियारों की स्मगलिंग हो रही है. ट्रकों में फलों की क्रेट्स के नीचे हथियार छुपा कर लाए जा रहे हैं. उस वक्त संघ स्वयंसेवक और जम्मू कश्मीर प्रजा परिषद संस्थापक बलराज मधोक और प्रेमनाथ डोगरा ने राजा हरि सिंह और मेहर चंद महाजन को मिलकर ‘ग्राउंड इटेंलीजेंस’ दी. संघ ने जम्मू की अपनी शाखाओं में 500 से अधिक युवाओं को लाठी आदि चलाने की ट्रेनिंग दी, बाद में इन लड़कों को राज्य की सेना या होमगार्ड्स आदि पदों पर नियुक्तियां मिल गईं.  RSS के इस गुमनाम नायक ने बचाईं 1187 जानें 22 अक्टूबर को जब कबाइलियों ने हमला बोला तो संघ के श्रीकृष्णा कौल की अगुवाई में श्रीनगर से 42 स्वयंसेवक बारामूला पहुंचे और करीब 1200 हिंदू-सिखों को वहां से ट्रकों के जरिए निकाला और श्रीनगर एयरफील्ड पहुंचाया. संघ के जम्मू कार्यालय में आज भी वो रजिस्टर रखा है, जहां शाखा प्रचारक श्रीकृष्णा कौल ने पूरी जानकारी खुद दर्ज की थी. उन्होंने 25 अक्तूबर 1947 को लिखा था कि, “42 स्वयंसेवकों ने मेरे नेतृत्व में बारामूला से 6 ट्रकों और 2 बसों के जरिए 1187 हिंदू, सिखों को निकालकर श्रीनगर पहुंचाया. 24 की रात को सफाकदल पहुंच गए. पाटन के पास फायरिंग के चलते 3 स्वयंसेवक घायल भी हो गए”.

Photo: AI generated ‘स्मृति ग्रंथ -कश्मीर संकट 1947’ में प्रो. बलराज द्वारा रिकॉर्ड किया गया कौल का बयान भी मिलता है, उन लोगों को तब बचाया गया, जब कबाइली बारामूला में घुस चुके थे और लूटमार मचा रहे थे, ““On 22nd night, news came that raiders had entered Baramulla. I gathered 42 trained swayamsevaks from Srinagar shakha. We left at 4 AM on 23rd in two groups. One group commandeered trucks from Badami Bagh depot. We reached Baramulla by 7 AM. Raiders were looting the bazaar. We moved door-to-door in Hindu mohallas (Tankipora, Guru Bazaar). Loaded 1,187 people — mostly women, children, elderly — into 6 trucks and 2 buses. Returned via Pattan–Srinagar road under gunfire. Reached Srinagar airfield by midnight 24th.”. उस वक्त घाटी में तैनात ब्रिगेडियर एलपी सेन ने भी अपनी किताब ‘स्लेडर वाज द थ्रैड’ में संघ के इन जांबाजों का जिक्र कुछ इस तरह से किया है, “On 25th October, I saw hundreds of refugees at the airfield — women and children mostly — brought in by a group of RSS boys in khaki shorts. Their leader, a tall Kashmiri Pandit, said they had come from Baramulla the previous night.” श्रीकृष्णा कौल जैसे तमाम गुमनाम नायकों की कहानी कभी सामने ही नहीं आई. श्रीनगर और एयरपोर्ट को बचाने में संघ का रोल

बारामूला से श्रीनगर बहुत ज्यादा दूर नहीं, ऐसे में संघ के स्वयंसेवकों ने भारतीय सेनाओं के आने तक श्रीनगर शहर में कबाइलियों को घुसने से रोकने के लिए डिफेंस पिकेट्स बनाना शुरू किया. ये पिकेट एक तरह वॉच टॉवर भी थे, क्योंकि डर बाहर से हमलावरों का तो था ही, अंदर के कुछ लोग भी उनके साथ मिल सकते थे, इसलिए शहर पर भी नजर रखनी थी, सो शहर को जोड़ने वाला झेलम पर बना ब्रिज अमिरा कदल, पहाड़ी किला हरी पर्वत, डाउन टाउन श्रीनगर का इलाका महाराज गंज जैसे इलाके इसके लिए चुने गए. यहां पर कुछ ऐसे हथियार या देसी जुगाड़ भी रखे गए ताकि हमलावरों को सेना आने तक टाला जा सके. दीवान रंजीत राय के नेतृत्व में 27 अक्टूबर की सुबह पहली डकोटा फ्लाइट उतरी, तो एयरफील्ड में तैनात ब्रिगेडियर एलपी सेन की सहायता के लिए पहले से संघ स्वयंसेवकों की एक टोली तैनात थी, जिसने ना केवल एयर स्ट्रिप से पूरी बर्फ हटवाई बल्कि डकोटा फ्लाइट की सुरक्षित लैंडिंग में सहायता की. संघ की एक टोली का काम हथियारबंद दस्ते के साथ ट्रकों और बसों में हिंदू सिखों को सुरक्षित निकालने का था और सफलता से उन्होंने पुंछ, राजौरी, जम्मू कैंट, और मीरपुर से ऐसे हजारों लोगों को निकाला. आरएसपुरा और साम्बा की संघ इकाइयों ने तो बाकायदा हमलावरों से लोहा लिया और उन्हें वहां घुसने नहीं दिया.  संघ का राष्ट्रीय सुरक्षा दल

यही नाम दिया गया था, उन स्वयंसेवकों के समूह को जो हमलावरों के बारे में राजा को, या स्थानीय आर्मी अधिकारियों को लगातार गुप्त सूचनाएं पहुंचा रहा था, उनके काम में मदद भी कर रहा था. ऐसे में भारत के मरणोपरांत पहले महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह, जो राजा हरि सिंह की सेना में तैनात थे, ने संघ के स्वयंसेवकों की सहायता से उरी व आसपास के इलाकों में हमलावरों को 4 दिन तक रोके रखा, चौथे दिन वो शहीद हो गए. संघ के सेवा कार्य, 1.5 लाख शरणार्थियों को मदद 1947 से 1949 के बीच संघ ने बंटवारे के पीड़ितों और कश्मीर के शरणार्थियों के लिए 12 कैम्प जम्मू में लगाए. इन कैम्पों में करीब 1.5 लाख शरणार्थियों को लाभ मिला. उनको कम्बल, दवाइयां, खाना आदि संघ स्वयंसेवकों ने मुहैया करवाया. कैंप में जब हैजा फैला तो संघ से जुड़े ड़ॉक्टर मदन लाल भसीन ने मोबाइल डिस्पेंसरी शुरू की. जम्मू में ही राष्ट्र सेविका समिति की महिला स्वयंसेवकों ने उन हिंदू-सिख महिलाओं को कैंपों में शरण देना शुरू किया, जिनको हमलावरों की कैद से निकाला गया था. इन शिविरों में संघ ने सरस्वती शिशु मंदिर भी शुरू किए और करीब 5000 बच्चों को उनमें दाखिला दिलवाया गया.  सरदार पटेल का गुरु गोलवलकर को पत्र

ऐसे में सरदार पटेल द्वारा गुरु गोलवलकर को पत्र में ये लिखना कि, “”The people of India have come to realize the true nature of the RSS and its activities… In particular, the work done by the RSS in connection with the Kashmir operations and in the Punjab and Bengal has shown that it is a well-organized and disciplined body capable of rendering great service to the country.” संघ के स्वयंसेवकों की मेहनत को पहचानने जैसा है. इस पत्र का जिक्र Sardar Patel’s Correspondence 1945–50, Vol. 6 में मिलता है.

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