देश में कुल 1.2 प्रतिशत स्टूडेंट्स की पढ़ाई स्कॉलरशिप से हुई है. (Photo: AI Generated)



केंद्र सरकार के शिक्षा पर व्यापक मॉड्यूलर सर्वेक्षण में पाया गया है कि लगभग एक-तिहाई स्कूली छात्र निजी कोचिंग लेते हैं और बड़े शहरों में ऐसा होना आम बात है. इस सर्वे में यह भी सामने आया कि करीबन 55.9 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूल से पढ़ाई कर रहे हैं. हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा ज्यादा है.

सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ रहे हैं, जहां दो-तिहाई (66.0 प्रतिशत) छात्र नामांकित हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह संख्या 30.1 प्रतिशत है. निजी गैर-सहायता प्राप्त (मान्यता प्राप्त) स्कूलों में देश भर में कुल नामांकन का 31.9 प्रतिशत हिस्सा है.

50 हजार से ज्यादा परिवारों का डेटा लिया गया

सीएमएस एजुकेशन सर्वेक्षण राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) के 80वें दौर का हिस्सा है. इस सर्वे का मकसद यह पता लगाना था कि पेरेंट्स अपने बच्चों की एजुकेशन पर कितना खर्चा कर रहे हैं. इस सर्वे को  कंप्यूटर-सहायता प्राप्त व्यक्तिगत साक्षात्कार (CPI) के जरिए किया गया है. इसके लिए पूरे भारत में 52,085 परिवारों और 57,742 छात्रों से डेटा लिया गया था.

शहर के स्टूडेंट्स पढ़ाई के लिए प्राइवेट कोचिंग लगवाते हैं

इस सर्वे में यह सामने आया कि करीबन 27 प्रतिशत स्टूडेंट्स पढ़ाई के लिए प्राइवेट कोचिंग लगवा रहे हैं. यह चलन शहरों में ज्यादा (30.7%) देखा गया, जबकि गांवों में थोड़े कम (25.5%) बच्चे कोचिंग ले रहे हैं. यानी अब पढ़ाई के साथ कोचिंग भी बहुत आम बात हो गई है, खासकर शहरी इलाकों में. शहरी क्षेत्रों में प्रति छात्र निजी कोचिंग पर औसत वार्षिक घरेलू खर्च (3,988 रुपये) ग्रामीण क्षेत्रों (1,793 रुपये) की तुलना में अधिक था. शहर और गांव में कोचिंग के खर्चे में भी अंतर हैं. शहर के स्टूडेंट्स कोचिंग पर औसत 9 हजार 950 रुपये तक खर्च कर रहे हैं. वहीं, गांव में 4 हजार तक खर्च होते हैं.

स्टेशनरी और किताबों पर भी होता है अच्छा खासा खर्चा

देशभर में शिक्षा का खर्च परिवार ही उठाते हैं, लगभग 95 प्रतिशत छात्रों ने बताया कि उनकी पढ़ाई का मुख्य वित्तीय स्रोत परिवार के सदस्य हैं, जबकि केवल 1.2 प्रतिशत छात्रों को सरकारी छात्रवृत्ति मिलती है. इसके अलावा कोर्स और फीस के अलवा किताबों और स्टेशनरी पर भी अच्छा खासा खर्चा किया जाता है. गांव में स्टेशनरी और किताबें खरीदना शहर के मुकाबले थोड़ा सस्ता पड़ता है. 
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