साहित्य आजतक 2025 के मुशायरे के कार्यक्रम में शायरों ने शिरकत की. Photo ITG



देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित ‘साहित्य आजतक 2025’ का तीन दिवसीय महाकुंभ रविवार को अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंचा. मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में आयोजित इस साहित्यिक महोत्सव ने कला, साहित्य और संगीत के रंगों से फ़िजा को गुलजार कर दिया. अंतिम दिन का मुख्य आकर्षण रहा मुशायरा, जहां शायरी का जादू और ग़ज़लों का सुकून दर्शकों के दिलों में बस गया. महफ़िल में शकील आज़मी, अज़हर इक़बाल, शबीना अदीब, शारिक कैफ़ी, ज़ुबैर अली ताबिश और अज़्म शकरी ने अपने हुस्न-ए-क़लाम से महफ़िल को रौशन किया. और पढ़ें

मोहब्बत, दिलकशी और एहसास की महक से सजी ग़ज़लें और शेर सुनकर दर्शकों ने खूब तालियां बजाईं. हर शेर में इश्क़, जज़्बात और रूहानियत का समां था, और हर ग़ज़ल में लफ़्ज़ों का वही जादू कि जो दिलों को छू जाए. महफ़िल के रंग और शायरों के हुस्न-ए-कलाम ने साहित्य की बगिया में चार चांद लगा दिए. मुशायरे का माहौल ऐसा था कि हर शेर पर दर्शक ‘वाह वाह’ कहते, क़लम और कलमकार की इस जोड़ी ने दिलों में यादगार लम्हों का सिलसिला बुन दिया. आइए देखते हैं किस शायर ने कौन सा शेर पढ़ा…

मुशायरे की शुरुआत अज़्म शकरी के शेर से हुई. उन्होंने पहला शेर पढ़ा…

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दिल के छालों को हथेली पर सजा लाया हूंगौर से देख मेरी जान मैं क्या लाया हूंमैंने शहर हमेशा के लिए छोड़ दिया लेकिन उस शहर को आंखो में बसा लाया हूं

इसके बाद उन्होंने अगला शेर पढ़ा…

सुबह तक कैसे गुजारी है, ये अब पूछती हैरात टूटे हुए तारों का सबब पूछती हैतू अब जाने पर तुला है तो जाजान भी जिस्म से जाती है तो कब पूछती है

उससे मिलने की जुस्तुजू भी हैऔर वो मेरे रूबरू भी हैअब नो रोएंगे हम ख़ुशी के लिएगम ही काफी है जिंदगी के लिएजो हमें जख्म देकर छोड़ गयाहम तड़पते रहे उसी के लिएजहर भी लग गया दवा बनकरहमने खाया था खुदखुशी के लिएउमर भर जिसका इंतजार कियावो मिला भी तो दो घड़ी के लिए

अज़्म शकरी ने शेर सुनाया…

दिल में हसरत बची ही नहींआग ऐसी लगी बुझी ही नहींमैं जिसे अपनी जान समझता थासच तो ये है कि वो मेरी थी नहींमुंतज़िर कबसे चांद बैठा हैकोई खिड़की अभी खुली ही नहीं

साहित्य आजतक में शारिक कैफ़ी ने शमा बांध दिया. उनके शेर पर दर्शकों ने खूब ताली बजाई… 

हुआ भी इश्क भी तो हमको बहुत दुश्वार वालाउसे कुछ रोज वाला है हमें एक बार वालाहमारा काम तो बस सिर्फ खबरें बेचना हैकहां अख़बार पढता है ओई अख़बार वालाछिड़ी जब गुफ्तगू तो रात तक चलती रही फिरन वो इतवार वाला था न मैं इतवार वाला

सफर हालांकि तेरे साथ अच्छा चल रहा हैबराबर से मगर एक रास्ता चल रहा हैजबानी खेल बनकर रह गया है इश्क अपनाजहां वादे के बदले सिर्फ वादा चल रहा हैहमें ये बीच झगड़े में अचानक याद आयातो इसके साथ तो झगड़ा हमारा चल रहा हैजवां लोगों की महफ़िल में कहां ले आए मुझकोजिधर देखो उधर कोई इशारा चल रहा हैगलत क्या है जो मेरे हाल पर हंसती है दुनियाबुढ़ापे आ गया और इश्क पहला चल रहा है

उन्होंने अगला शेर पढ़ा…

रोना हो आसान हमाराइतना कर नुकसान हमाराबात नहीं करनी तो मत करचेहरा तो पहचान हमाराखुशफहमी हो जाएगी हमकोमत रख इतना ध्यान हमारापहली चोट में जान गए हमइश्क नहीं मैदान हमाराजीत गया तेरा भोलापनहार गया शैतान हमारामौत ने आकर बांध लिया थापहले ही सामान हमारारोना हो आसान हमाराइतना कर नुकसान हमारा

शकील आज़मी के शेर पर तो दर्शक सीट से उठकर झुमने लगे. उनके शेर खासकर युवाओं के लिए थे. उन्होंने शेर सुनाया…   

दिल बसे थे मगर उजड़ रहे थेहम मोहब्बा की जंग लड़ रहे थेइश्क के हाथ बुन रहे थे हमेंशक के हाथों से हम उधड़ रहे थेबात ऐसी कि कोई बात न थीहम उसी बात पर झगड़ रहे थेएक ही दिन में सब नहीं हुआ खत्महम कई रोज से बिछड़ रहे थेगांव में बारिशों का मौसम थाऔर हम मछलियां पकड़ रहे थेतेरह चौदह वर्ष की उम्र थी वहहम उसी उम्र में बिगड़ रहे थे

जो रंजिशें थी उन्हें बरकरार रहने दियागले मिले भी तो दिल में गुबार रहने दियाउसे भुला भी दिया, याद भी रखा उसको, नशा उतार दिया और ख़ुमार रहने दिया

फूल का शाख पर आना भी बुरा लगता हैतू नहीं तो जमाना भी बुरा लगता है

ज़रा सा साथ चल के रास्ते में छोड़ देती हैमोहब्बत दिल बनाती है मगर फिर तोड़ देती हैकहानी में मिरी इक छोटा सा किरदार है उसकामगर वो जब भी आती है कहानी मोड़ देती है

निगाह देर से उलझी हुई किवाड़ में हैवो जा चुकी है मगर थोड़ी सी दरार में हैकिसे हटाऊं कोई उसके आस पास नहींछुपी हुई वो खुद अपने बदन की आड़ में है

करीब आते हुए इतने पास हो गए थेकि फिर बिछड़ते हुए हम उदास हो गए थेहवस को इश्क में शामिल नहीं किया हमनेवो जब भी जिस्म बना हम लिबास हो गए थे

हाल दिल का उसे सुनाते हुएरो पड़ा था मैं मुस्कुराते हुएआग मेरी थी न धुंआ मेरामैं जला था उसे बुझाते हुएभीगती जा रही थी एक लड़कीबारिशों में नशा मिलाते हुए

हार हो जाती है जब मान लिया जाता हैजीत तब होती है जब ठान लिया जाता हैएक झलक देख के जिस शख्स की चाहत हो जाएउसको परदे में भी पहचान लिया जाता है

परों को खोल जमाना उड़ान देखता हैजमीं पर बैठकर क्या आसमान देखता है

अज़हर इक़बाल ने भी मोहब्बत को समर्पित कई शेर पढ़े. उन्होंने पहला शेर सुनाया…

मेरे मिट्टी का बदन जबसे छुआ है उसनेउठ रही है मेरे मिट्टी से बदन की खुशबू

दिल ये कहता है अगर आप हमारे होतेअब भी प्यारे हैं मगर और भी प्यार होतेमेरी आंखों में चमकते हुए कतरे देखोअगर ये अश्क न होते तो सितारे होतेदेखकर उसको हमेशा ये ख्याल आता हैकाश शादी न हुई होती कंवारे होते

परिंदों को शजर अच्छा लगा हैबहुत दिन बाद घर अच्छा लगा हैगले में है तेरी बाहों का घेराये बाइक का सफर अच्छा लगा है

देह को प्रेम का आधार समझ लेते हैंलोग इस पार को उस पार समझ लेते हैंएक ही वक़्त में दो लोगों को हो जाये अगरहम उसे प्रेम का विस्तार समझ लेते हैं

जो पत्थर थी कभी अब फूल होती जा रही हैवो लड़की प्रेम के अनुकूल होते जा रही हैवो जब कॉलेज में आई तो बहुत शालीन सी थीहमारे साथ रहते हुए कूल होते जा रही है

ये शाम साथ में व्यतीत करके देखते हैंजो वेदना है उसे गीत करके देखते हैंहमारे सामने आती है जब वो मृगनैनीहम उसको और भी भयभीत करके देखते हैं  

इतना संगीन पाप कौन करे मेरे दुख पर विलाप कौन करेचेतना मर चुकी है लोगों कीपाप पर पश्चाताप कौन करे

शबीना अदीब ने अपने कई शेर तरन्नुम में पढ़े. उनका मशहूर शेर …तुम्हारी दौलत नई नई है…इसे दर्शकों ने खूब प्यार दिया. शबीना ने शेर की शुरुआत में पढ़ा…

अपना गम इस तरह थोड़ा कम कीजिएदूसरों के लिए आंख नम कीजिएकुछ गरीबों के दिल भी संवर जाएंगेआप अपनी जरूरत को कम कीजिए

इश्क को भी लोग सियासत की तरह करते हैंहम यही काम इबादत की तरह करते हैंजिनको दौलत से ज्यादा नहीं प्यारा कुछ भीवो मोहब्बत भी तिजारत की तरह करते हैं 

ख़मोश लब हैं झुकी हैं पलकें दिलों में उल्फ़त नई नई हैअभी तकल्लुफ़ है गुफ़्तुगू में अभी मोहब्बत नई नई है

अभी न आएगी नींद तुम को अभी न हम को सुकूँ मिलेगाअभी तो धड़केगा दिल ज़ियादा अभी ये चाहत नई नई है

बहार का आज पहला दिन है चलो चमन में टहल के आएँफ़ज़ा में ख़ुशबू नई नई है गुलों में रंगत नई नई है

जो ख़ानदानी रईस हैं वो मिज़ाज रखते हैं नर्म अपनातुम्हारा लहजा बता रहा है तुम्हारी दौलत नई नई है

ज़रा सा क़ुदरत ने क्या नवाज़ा कि आ के बैठे हो पहली सफ़ मेंअभी से उड़ने लगे हवा में अभी तो शोहरत नई नई है

हमेशा इक दूसरे के हक में दुआ करेंगे, ये तय हुआ थामिले कि बिछड़े मगर तुम्ही से वफा करेंगे, ये तय हुआ थाकहीं रहो तुम कहीं रहें हम, मगर मुहब्बत रहेगी कायमजो ये खता है तो उम्र भर ये खता करेंगे, ये तय हुआ था

साहित्य प्रेमियों के लिए कार्यक्रम के आखिरी दिन ज़ुबैर अली ताबिश ने कई ऐसे शेर पढ़े जिसे सुनकर दर्शकों ने खूब तालियां बजाईं. उन्होंने शेर सुनाया…

कुछ बोलो तो लहजा समझूंख़ामोशी को मैं क्या समझूंतुम भी कच्चे, मैं भी कच्चातो मैं क्या रिश्ता पक्का समझूं
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