अफगानिस्तान में तालिबान शासन ने एक नया फरमान जारी कर विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम से 679 किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिनमें लगभग महिलाओं द्वारा लिखा 140 किताबें शामिल हैं. ये किताबें विज्ञान और मानविकी जैसे क्षेत्रों से संबंधित हैं. इसके साथ ही तालिबान ने मानवाधिकार, जेंडर अध्ययन, पत्रकारिता और राजनीति विज्ञान जैसे 18 विषयों पर भी पाबंदी लगा दी है, क्योंकि इन्हें शरिया कानून के अनुरूप नहीं माना गया है.
अफगानिस्तान के उच्च शिक्षा मंत्रालय ने इन बदलावों को लागू करने के लिए एक 50 पेज की एक लिस्ट जारी की है. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय संगठन जैसे ह्यूमन राइट्स संगठनों ने इस कदम की कड़ी निंदा की है.
तालिबान के उच्च शिक्षा उप मंत्री द्वारा विश्वविद्यालयों को लिखे गए एक पत्र में इस निर्देश की घोषणा की गई है. ये पत्र अगस्त के अंत में लिखा गया था और गुरुवार को इंडिपेंडेंट फारसी में प्रकाशित हुआ था. पत्र में कहा गया था कि ये शीर्षक शरिया या इस्लामी कानून के सिद्धांतों के विपरीत हैं.
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‘महिलाओं द्वारा लिखी किताबें पढ़ाने की अनुमति नहीं’
वहीं, पुस्तकों की समीक्षा करने वाली समिति के एक सदस्य ने बाद में बीबीसी अफगान को तालिबान की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि, ‘महिलाओं द्वारा लिखी गई सभी किताबों को पढ़ाने की अनुमति नहीं है.’
ह्यूमन राइट्स संगठनों की आलोचना
तलिबानी सरकार द्वारा ये कदम 2021 से महिलाओं की माध्यमिक शिक्षा और 2022 से उच्च शिक्षा पर प्रतिबंध के बाद उठाया गया है. ये प्रतिबंध अफगान महिलाओं के लिए एक बड़ा झटका है, जिन्होंने देश के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई की और अपने ज्ञान को किताबों के माध्यम से साझा किया. अंतरराष्ट्रीय संगठन जैसे ह्यूमन राइट्स वॉच ने इस कदम की कड़ी निंदा की है, इसे महिलाओं के अधिकारों और राष्ट्रीय विकास के लिए गंभीर खतरा बताया है. तालिबान का ये कदम न केवल शिक्षा तक महिलाओं की पहुंच को सीमित करता है, बल्कि उनके बौद्धिक योगदान को भी दबाने का कोशिश करता है.
ब्रिटेन स्थित ‘द राहेला ट्रस्ट’ की निदेशक राहेला सिद्दीकी ने इस प्रतिबंध को ‘एक आपराधिक कृत्य’ बताया है. उन्होंने कहा कि यह न केवल महिलाओं को प्रभावित करता है, बल्कि पुरुषों और पूरे समाज को भी प्रभावित करेगा, क्योंकि ये किताबें विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का हिस्सा थीं. सिद्दीकी का कहना है कि महिलाओं के लेखन को हटाना उनके इतिहास को नष्ट करने का एक प्रयास है.
तालिबान के इस फैसले ने वैश्विक स्तर पर तीखी प्रतिक्रियाएं जन्म दी हैं. जहां कुछ देशों और संगठनों ने इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया है, वहीं कुछ अन्य समूहों ने तालिबान के इस कदम को उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुरूप ठहराने की कोशिश की है. जबकि कई का माना है कि ये मुद्दा न केवल अफगानिस्तान के भविष्य को प्रभावित कर रहा है, बल्कि वैश्विक स्तर पर लैंगिक समानता और शिक्षा के अधिकारों पर बहस को भी तेज कर रहा है.
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