कभी उधार के बॉक्सिंग ग्लव्स पहनकर रिंग में दाखिल होने वाली मीनाक्षी हुड्डा आज वर्ल्ड चैम्पियन बन चुकी हैं. ऑटो ड्राइवर की बेटी मीनाक्षी के घर में टीवी तक नहीं था. लेकिन उन्होंने गरीबी, सामाजिक तानों और हर दबाव को झेलते हुए हुए करियर में नया मुकाम हासिल किया है. 24 साल की मीनाक्षी ने भारत के लिए वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप 2025 में गोल्ड मेडल जीता.
इंग्लैंड के लिवरपूल में हुई इस चैम्पियशिप में भारत की बॉक्सिंग टीम ने कुल चार पदक जीते. इसमें दो स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य शामिल रहे. लेकिन सबसे ज्यादा चमक मीनाक्षी हुड्डा (48 किग्रा) और जैस्मिन लेंबोरिया (57 किग्रा) के स्वर्ण पदकों ने बिखेरी. मीनाक्षी ने पेरिस 2024 ओलंपिक की ब्रॉन्ज मेडलिस्ट कजाखस्तान की नाजिम काइजेबे को 4-1 से हराया. वहीं जैस्मिन लेंबोरिया ने पेरिस ओलंपिक की रजत पदक विजेता पोलैंड की जूलिया जेरेमेटा को 4-1 से धूल चटाई.
मीनाक्षी हुड्डा की इस जीत के पीछे संघर्ष की एक ऐसी दास्तान है जो इसे और खास बना देती है. मीनाक्षी के पिता श्रीकृष्ण पिछले तीन दशकों से किराए का ऑटो चलाते आ रहे हैं. घर की आर्थिक हालत सही नहीं थी, लेकिन फिर भी उन्होंने बेटी के सपनों को टूटने नहीं दिया. पड़ोसियों ने यह कहकर हतोत्साहित किया कि चोट लग जाएगी और फिर शादी भी नहीं होगी, लेकिन पिता ने मीनाक्षी का साथ नहीं छोड़ा, भले ही कभी बेटी के लिए पिता को ग्लव्स तक उधार लेने पड़े हों.
बॉक्सिंग का हब बना हरियाणा का रुड़की गांवमीनाक्षी हुड्डा हरियाणा के रुड़की गांव से ताल्लुक रखती हैं. लगभग सात हजार की आबादी वाला यह गांव रोहतक शहर से 15 किलोमीटर दूर है. इस गांव से मीनाक्षी के अलावा बॉक्सिंग में कुछ स्टार खिलाड़ी निकलकर सामने आई हैं, जिनमें शिक्षा नरवाल, ज्योति और मोनिका भी शामिल हैं.मीनाक्षी ने वर्ल्ड चैम्पियन बनने के बाद स्पोर्ट्स टुडे से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने अपनी बॉक्सिंग जर्नी को याद किया. मीनाक्षी ने कहा कि उन्हें पहले लोग ताने देते थे. कुछ लोग अब भी बोलेंगे, लेकिन समय के साथ-साथ लोगों का रुझान बॉक्सिंग के प्रति बढ़ा है.
मीनाक्षी हुड्डा कहती हैं, ‘मुझे बहुत ज्यादा खुशी हो रही थी, समझ ही नहीं आया कि क्या हो गया. सभी इतने खुश थे. सभी कोच भी काफी खुश थे और मुझे भी काफी खुशी हो रही थी. मैंने मम्मी को कॉल किया था. पापा के पास बड़ा फोन नहीं है, इसलिए मैं उन्हें कॉल नहीं कर सकती. उन्हें फोन चलाना नहीं आता.’
मीनाक्षी हुड्डा ने आगे कहा, ‘लोगों का काम बोलना होता है. अभी भी बोलेंगे, पहले भी बोलते थे. गांव के लोग खुली सोच वाले इंसान नहीं होते. शुरुआत में नहीं… लेकिन हमारे गांव के सीनियर्स शिक्षा नरवाल, ज्योति, मोनिका के मेडल आने शुरू हुए तो लोगों में थोड़ा रुझान हुआ. अब तो सभी बॉक्सिंग करने के लिए कहते हैं. 60 से 70 लड़कियां हमारे सेंटर में प्रैक्टिस करती हैं.’
मीनाक्षी हुड्डा ने बताया, ‘हमारा गांव अभी पूरा सपोर्ट करता है. हमारे गांव में जब बॉक्सिंग शुरू हुई, तो उस समय सभी बोलते थे. जब एक गांव से 50 लड़कियां आती हैं, तो माहौल बदलना तय है. सभी चाहते कि उनके बच्चे बॉक्सिंग करें. सभी ये चाहते हैं कि गांव का नाम रोशन हो, देश का नाम रोशन हो.’
मुझे खुूद पर भरोसा था: मीनाक्षी हुड्डा
मीनाक्षी हुड्डा ने वर्ल्ड चैम्पियनशिप को लेकर कहा, ‘इतनी बड़ी प्रतियोगिता थी. मैं पहली बार जा रही थी, तो ये सोचा था कि वहां से कुछ अच्छा करके आना है. 15 दिन का हमारा ट्रेनिंग कैम्प था. ट्रेनिंग की और खुद पर भरोसा किया. कोच मुझे काफी मोटिवेट करते थे. कहते थे कि तुझे मौका मिला है तो अब खुद को साबित करके दिखाओ. लक्ष्य यही था कि गोल्ड लेकर आना है.’
मीनाक्षी हुड्डा ने अंत में कहा, ‘फाइनल वाली बाउट मेरे लिए सबसे कठिन रही. क्वार्टर फाइनल वाली बाउट भी अहम थी, जहां इंग्लैंड की बॉक्सर थी. उसे होम क्राउड का सपोर्ट था. लेकिन मुझे भरोसा था कि उसे हरा दूंगी. 5-0 से वो बाउट जीती. फिर फाइनल में जीत हासिल की. मैं यही संदेश देना चाहती हूं कि कभी किसी को खुद से हार नहीं माननी चाहिए.’
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